एक माँ अपनी नन्हीं-सी बच्ची को गोद में उठाए,
निढाल-सी चली जा रही थी मंदिर की सीढियो पर,
आँखो में आँसू थे
और मन में कई सवाल
एक बेटी कोख में ही खो चुकी थी,
दुसरी को बचाने के लिए छोड़ आयी थी घरबार|
सोचा था एक माँ से पाएगी अपने हर सवाल का जवाब|
उसके लिए तो सब है एक समान...
वो खुद भी तो है एक स्त्री;
फिर कैसे होने देगी ये अन्याय
इसी उधेङबुन में डूबी पहुंची वो मन्दिर के अन्दर
दिखी एक लम्बी सी लाइन मुरादियो की...
ढेर सारे चढावो के साथ
कुछ बेटो की चाह लिए...
कुछ उनकी सलामती की दुआ करते !
पर आते ही सामने उसके चेहरे पर आयी एक व्यंग्य भरी मुस्कान
और सारे सवालो का चढावा चढा कर
अपनी नन्हीं सी बच्ची को लेकर लौट गयी वो!
देखकर उस माँ की गोद में भी एक बालक का वरदान...।।
No comments:
Post a Comment